मनुष्य के भीतर संघर्ष का सामना करने की अपार क्षमता है। यह आंतरिक शक्ति हमारी प्रकृति का हिस्सा है। विशेषकर भारत देश में हम हर चुनौती का सामना करने की क्षमता रखते हैं।आज विश्व के सामने मानसिक स्वास्थ्य का संकट सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। चाहे विकसित देश हों या विकासशील, युद्धग्रस्त क्षेत्र हों या शांतिपूर्ण समाज, सभी इससे प्रभावित हो रहे हैं। दुनिया में होने वाली आधी से अधिक हिंसा की जड़ें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों में ही छिपी हैं। अपनी आध्यात्मिकता के बल से भारत, विश्व में व्याप्त मानसिक स्वास्थ्य संकट से निपटने में बड़ी भूमिका निभाता आ रहा है।
हर व्यक्ति का स्वाभाविक स्वभाव दयालु, प्रेमपूर्ण, करुणामय और आनंदित होना है। कोई बच्चा अकारण नहीं रोता। वह भूखा हो, थका हो या डर गया हो, तभी रोता है। उसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति हिंसक है तो उसके पीछे कोई कारण अवश्य है। यदि किसी में करुणा नहीं है तो उसके पीछे भी कोई कारण होगा। जब आप गहराई से देखते हैं तो ज्ञात होता है कि इसका मूल कारण एकाकीपन, भय, अस्वीकृति की भावना और अपनत्व का अभाव है ।
शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने पर हम किसी को अस्पताल भेजते हैं; जहाँ उनका इलाज होता है। मानसिक रूप से अस्वस्थ होने पर जब कोई समाज विरुद्ध गलत कर्म करता है तो हम उसे जेल भेजते है; लेकिन जेल में हम उसे ऐसा कोई साधन नहीं देते जिससे वह अपने मन को समझ सके, अपने व्यवहार को सुधार सके।
आम तौर पर, न घर में और न ही स्कूल में हमें यह सिखाया जाता है कि अपनी भावनाओं को कैसे संभालना है। समय-समय पर अकेलापन महसूस करना स्वाभाविक है। धनी लोग, परिवार में रहते हुए या मित्रों से घिरे लोग भी उदासी महसूस करते हैं। आज अकेलेपन की जो समस्या सबसे बड़ी मानसिक स्वास्थ्य चुनौती बन गई है, उसका कारण यही है कि हमने यह नहीं सीखा कि अपने साथ कैसे रहना है, अपने भीतर शांति का अनुभव कैसे करना है। यदि हम यह सीख लें तो अपने चारों ओर भी प्रसन्नता फैला सकते हैं।
इन सभी वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान श्वास में ही छिपा है। मन में उपजी हर भावना हमारे शरीर के किसी न किसी हिस्से में विशेष संवेदना पैदा करती है और यह हमारी श्वास से जुड़ी होती है। जब आप उदास या प्रसन्न होते हैं, तो आपकी श्वास की लय बदल जाती है।
जब आप क्रोधित, निराश या ईर्ष्यालु होते हैं, तो नहीं जानते कि उन भावनाओं के साथ क्या करें और उन्हें भीतर ही दबाए रखते हैं। लेकिन आपकी श्वास कह रही होती है,“मैं तो दिन-रात तुम्हारे भीतर आ-जा रही हूं। यदि तुम मुझे थोड़ा ध्यान दो, तो मैं तुम्हें प्रसन्न रखूंगी, तुम्हारे मनोबल को ऊंचा उठाऊंगी और तुम्हारी ऊर्जा को प्रखर बनाऊंगी।”
दुनिया भर में लाखों लोग श्वास–प्रश्वास की सरल तकनीकें और ध्यान सीखकर अपने जीवन को बदल चुके हैं। उदाहरण के लिए, सुदर्शन क्रिया ने असंख्य लोगों को निराशा और चिंता से बाहर निकलने में मदद की है। ये तकनीकें हमें अपने मन का स्वामी बनना सिखाती हैं, उसके गुलाम नहीं।
सारा आनंद इसी क्षण में है। इसमें बच्चे हमें बहुत कुछ सिखा सकते हैं। बच्चा एक पल रोता है और अगले ही पल खिलखिला उठता है। वह नकारात्मक भावनाओं पर मानो “डिलीट बटन” दबा देता है। लेकिन जैसे–जैसे हम बड़े होते हैं, यह क्षमता खो देते हैं। श्वास की तकनीकें और ध्यान हमें हमारी वास्तविक प्रकृति से जोड़ते हैं और वर्तमान क्षण में प्रसन्न रहने में मदद करते हैं।
मानसिक स्वच्छता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी दंत स्वच्छता। जिस प्रकार दंत स्वच्छता के लिए रोज़ाना दांत साफ करना आवश्यक है, उसी प्रकार मन की स्वच्छता के लिए उपाय करना भी आवश्यक है। प्रतिदिन कुछ मिनट श्वास अभ्यास और ध्यान करने से मन की प्रसन्नता लौट आती है। जब हम स्वयं को जैसे हैं वैसे ही स्वीकार करना सीखते हैं और भीतर से प्रसन्न होते हैं, तो करुणा और अपनापन स्वतः ही प्रवाहित होता है।
और अंत में, हम सबको सेवा करनी चाहिए। पाने में आनंद है, पर वह शैशव अवस्था का आनंद है। देने में जो आनंद है, वह कहीं अधिक परिपक्व और गहरा होता है। जब युवाजन सेवा में लगते हैं, तो उनका हृदय खुल जाता है और उनका मानसिक स्वास्थ्य भी सशक्त होता है। समाज के प्रति योगदान करने से मन में एक ऐसे जुड़ाव का अनुभव और उद्देश्य की प्राप्ति होती है, जो बड़े से बड़ा सुविधापूर्ण जीवन भी नहीं दे सकता।