हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली धनराशि के दुरुपयोग पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि यह पैसा केवल देवताओं का है और राज्य सरकार का इस पर कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मंदिर ट्रस्टी केवल संरक्षक (custodian) हैं, मालिक नहीं।
भक्तों कि तरफ से किया दान भगवान के प्रति आस्था का प्रतीक
जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस राकेश कैंथला की खंडपीठ ने 38 पेज के इस फैसले में कहा कि मंदिर की आय “पवित्र” मानी जाएगी और इसे न तो राज्य के राजस्व का हिस्सा समझा जा सकता है, न ही सरकारी योजनाओं में खर्च किया जा सकता है। भक्तों कि तरफ से किया गया दान भगवान के प्रति उनकी आस्था का प्रतीक है, और इसका उपयोग केवल देवताओं की सेवा, मंदिरों के रखरखाव तथा सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में होना चाहिए।
कोर्ट ने आदेश दिया कि हर मंदिर प्रशासन को अपनी आय और खर्च का ब्यौरा नोटिस बोर्ड और वेबसाइट पर सार्वजनिक करना होगा, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
फैसले में कहा गया कि मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं, बल्कि समाज के आध्यात्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक उत्थान के केंद्र हैं। हाईकोर्ट ने इंटरकास्ट मैरिज की भी वकालत करते हुए कहा कि धर्म का असली उद्देश्य समाज में समानता और सद्भाव बढ़ाना है।
कोर्ट ने साफ किया कि अब सरकार मंदिरों की आय का उपयोग पुल, भवन, वाहनों या वीआईपी गिफ्ट की खरीद में नहीं कर सकेगी।
हिमाचल में वर्तमान में 36 सरकारी मंदिर हैं
गौरतलब है कि हिमाचल में वर्तमान में 36 सरकारी मंदिर हैं, जिनके पास करीब 404 करोड़ रुपये की संपत्ति और नकद राशि है। इन मंदिरों से पहले भी सरकारों ने पैसा मांगा था— कांग्रेस सरकार ने फरवरी 2025 में ‘सुख शिक्षा योजना’ और ‘मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना’ के लिए अंशदान मांगा था, जबकि 2018 में भाजपा सरकार ने मंदिरों की आय का 15% हिस्सा गोशालाओं को देने की बात कही थी।