ख़बरिस्तान नेटवर्क : सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय करने वाली याचिकाओं पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपालों के पास विधानसभाओं द्वारा पारित बिलों को अनिश्चितकाल तक रोकने या उन पर पूरी तरह रोक लगाने की शक्ति नहीं है।
गवर्नर के पास मौजूद हैं केवल 3 विकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि जब कोई बिल विधानसभा से पास होकर राज्यपाल के पास आता है, तो उनके पास केवल तीन विकल्प होते हैं, पहला – वह बिल को मंजूरी दें, दूसरा – बिल को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस भेजें, तीसरा बिल को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करें।
इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि हालांकि बिलों की मंजूरी के लिए कोई निश्चित ‘डेडलाइन’ तय नहीं की जा सकती, लेकिन अगर राज्यपाल फैसले लेने में अनावश्यक देरी करते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप कर सकता है।
तमिलनाडु विवाद से उठी थी मांग
इस मामले की जड़ें तमिलनाडु सरकार और वहां के राज्यपाल के बीच हुए विवाद में हैं। तमिलनाडु सरकार ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को जानबूझकर रोक रहे हैं। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया था कि राज्यपाल के पास कोई ‘वीटो पावर’ नहीं है, यानी वे बिल को खत्म नहीं कर सकते।
राष्ट्रपति के लिए 3 महीने की समय सीमा
इसी मामले में 11 अप्रैल को सामने आए आदेश में कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई राज्यपाल किसी बिल को राष्ट्रपति के पास भेजता है, तो राष्ट्रपति को उस पर 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। इसके बाद राष्ट्रपति ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगते हुए 14 सवाल पूछे थे। इस मामले में पिछले 8 महीनों से सुनवाई चल रही थी, जिस पर अब कोर्ट ने स्थिति स्पष्ट कर दी है।